नियमपूर्वक संध्या करने से पापरहित होकर ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है.-रात या दिन में जो विकर्म हो जाते हैं, वे त्रिकाल संध्या से नष्ट हो जाते हैं. संध्या नहीं करने वाला मृत्यु के बाद कुत्ते की योनि में जाता है. संध्या नहीं करने से पुण्यकर्म का फल नहीं मिलता. समय पर की गई संध्या इच्छानुसार फल देती है. घर में संध्या वंदन से एक, गो-स्थान में सौ, नदी किनारे लाख तथा शिव के समीप अनंत गुना फल मिलता है. सायंकाल देवता के समक्ष दीप जलाकर उसे नमस्कार करें.SeeMore.........................
Friday, 9 December 2011
Thursday, 8 December 2011
"सुखी जीवन चाहे तो तीन बाते कभी ना भूले"
1. तीन बातें कभी न भूलें - प्रतिज्ञा करके, क़र्ज़ लेकर और विश्वास देकर.
2. तीन बातें करो - उत्तम के साथ संगीत, विद्वान् के साथ वार्तालाप और सहृदय के साथ मैत्री.
3. तीन अनमोल वचन - धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और चरित्र गया तो सब गया.
4. तीन से घृणा न करो - रोगी से, दुखी से और निम्न जाति से.
"क्या आप जानते है एलोवेरा के इतने औषधीय गुणों को ?"
एलोवेरा (ग्वार पाठा ) का नाम आजकल बहुत चर्चित है. एलोवेरा को हम बहुत से नामो से जानते है - ग्वारपाठा, चित्र कुमारी, धृत कुमारी आदि. बहुत से फायदों की वजह से एलोवेरा को चमत्कारी पौधा कहा जाता है. घृतकुमारी का पौधा बिना तने का या बहुत ही छोटे तने का एक गूदेदार और रसीला पौधा होता है.SeeMore...........
Wednesday, 7 December 2011
"जतीपुरा में श्रीनाथ जी का प्राकट्य"
जब आस पास के ब्रजवासियों की गायें घास चरने श्रीगोवेर्धन पर्वत पर जाती थी तब श्रावण शुक्ल पंचमी (नागपंचमी) सं. १४६६ के दिन सद्द् पाण्डे की घूमर नाम की गाय को खोजने गोवर्धन पर्वत पर गया, तब उन्हें श्री गोवर्द्धनाथजी की ऊपर उठी हुई वाम भुजा के दर्शन हुए. उसने अन्य ब्रजवासियों को बुलाकर ऊर्ध्व वाम भुजा के दर्शन करवाये। SeeMore.............
Tuesday, 6 December 2011
"श्री अंग का ताप मिटाने ठाकुर जी करते है चन्दन का श्रृंगार"
एक बार माधवेंद्रपुरी जी व्रज मंडल जतीपुरा(गोवर्धन) में आये, जब वे रात में सोये तो गोपाल जी उनके स्वप्न ने आये, और बोले -पुरी! देखो में इस कुंज में पड़ा हूँ, यहाँ सर्दी, गर्मी, वरसात, में बहुत दुःख पता हूँ. तुम इस कुंज से मुझे बाहर निकालो और गिरिराज जी पर मुझे स्थापित करो? जब माधवेंद्रपुरी जी सुबह उठे तो उन्होंने व्रज के कुछ ग्वालो को लेकर उस कुंज में आये और कुंज को ध्यान से खोदा, तो मिट्टी में एक श्री विग्रह पड़ा था, उसे लेकर स्नान अभिषेक करके पुरि जी ने स्थापित कर दिया. SeeMore.................
Monday, 5 December 2011
!! गीता जयंती !!
आप सभी को राधाकृपा परिवार की ओर से "गीता जयंती" की हार्दिक-हार्दिक शुभकामनायें.
ब्रह्मपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है। द्वापर युग में
भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए यह
तिथि "गीता जयंती" के नाम से भी प्रसिद्ध है। और इस एकादशी को "मोक्षदा एकादशी"
कहते है. भगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर, विश्व के मानव मात्र को गीता के ज्ञान
द्वारा जीवनाभिमुख बनाने का चिरन्तन प्रयास किया है।
सभी जानकारी के लिये दी हुई लिंक पर क्लिक करके जरुर पढ़े..............
!!मोक्षदा एकादशी!!
मार्गशीर्ष(अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को "मोक्षदा एकादशी " कहते हैं. इस दिन श्रद्धालु
व्रत के साथ भगवान दामोदर की पूजा करते हैं.
मोक्षदा एकादशी की कथा :- प्राचीन गोकुल नगर में वैखानस नाम का एक राजा राज्य करता था
उसके राज्य में चारो वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे एक बार रात्रि को स्वप्न में राजा ने अपने
पिता को में पड़ा देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ और प्रातः काल होते ही वह ब्राह्मणों के सामने
अपने स्वप्न की कथा कह दी. ...................
प्रबोधिनी एकादशी व्रत विधि?
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"जब झोले में ही झूलन का आनंद पाने लगे राधा विनोद जी"
एक दिन श्री लोकनाथ गोस्वामी को छत्रवन के पास उमराव गाँव में किशोरीकुण्ड पर श्री कृष्ण विरह में व्याकुल होकर रो रहे थे. सोच रहेथे कि मेरे पास कोई विग्रह होता तो सेवा संपादन करते तो कुछ धीरज होती .इतने में ही एक दिव्य श्री विग्रह लाकर इनके सामने उपस्थित हुआ और बोला - बाबा ! लो इस मूर्ति की आप सेवा करना , इनका नाम "राधाविनोद" है श्री विग्रह को हाथ में लिया, तभी बालक जाने कहाँ चला गया. See More......
Sunday, 4 December 2011
"जब शलिग्राम शिला से फूट पड़े व्रज किशोर जी के अंग "
एक बार वृंदावन यात्रा करते हुए एक सेठ जी ने वृंदावनस्थ समस्त श्री विग्रहों के लिए अनेक प्रकार के बहुमूल्य वस्त्र आभूषण आदि भेट किये. श्री गोपाल भट्ट जी को भी उसने वस्त्र आभूषण दिए.परन्तु श्री शालग्राम जी को कैसे वे धारण कराते श्री गोस्वामी के हृदय में भाव प्रकट हुआ कि अगर मेरे आराध्य के भी अन्य श्रीविग्रहों की भांति हस्त-पद होते तो मैं भी इनको विविध प्रकार से सजाता एवं विभिन्न प्रकार की पोशाक धारण कराता, और इन्हें झूले पर झूलता। यह विचार करते-करते श्री गोस्वामी जी को सारी रात नींद नहीं आई.
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