Sunday, 4 December 2011

"जब शलिग्राम शिला से फूट पड़े व्रज किशोर जी के अंग "


एक बार वृंदावन यात्रा करते हुए एक सेठ जी ने वृंदावनस्थ समस्त श्री विग्रहों के लिए अनेक प्रकार के बहुमूल्य वस्त्र आभूषण आदि भेट किये. श्री गोपाल भट्ट जी को भी उसने वस्त्र आभूषण दिए.परन्तु श्री शालग्राम जी को कैसे वे धारण कराते श्री गोस्वामी के हृदय में भाव प्रकट हुआ कि अगर मेरे आराध्य के भी अन्य श्रीविग्रहों की भांति हस्त-पद होते तो मैं भी इनको विविध प्रकार से सजाता एवं विभिन्न प्रकार की पोशाक धारण कराता, और इन्हें झूले पर झूलता। यह विचार करते-करते श्री गोस्वामी जी को सारी रात नींद नहीं आई.
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