निकुंजेश्वरी श्री राधा की अतिशय सुकुमारता के कारण रसिक शिरोमणि श्री श्यामसुन्दर उनके सुकोमल अंगों का स्पर्श मन के हाथो से भी करने में सकुचाते है ("छुअत ना रसिक रंगीलौ लाल प्यारी जु कौ, मन हूँ के करनि सौ छूवत डरत है") और सुकुमारी श्री राधारानी पर स्नेहवश अपने प्राणों की छाया किये रहते है
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निकुंजेश्वरी श्री राधा की अतिशय सुकुमारता के कारण रसिक शिरोमणि श्री श्यामसुन्दर उनके सुकोमल अंगों का स्पर्श मन के हाथो से भी करने में सकुचाते है ("छुअत ना रसिक रंगीलौ लाल प्यारी जु कौ, मन हूँ के करनि सौ छूवत डरत है") और सुकुमारी श्री राधारानी पर स्नेहवश अपने प्राणों की छाया किये रहते है
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